न जाने कब कौन उसे जकड़ लेगा आशीष तिवारी आरव Na jaane kon use kab jakad lega poetry by Ashish Tewari Aarav

वो चाहती है बाहर निकलना

उसे डर है कोई उसे जकड़ लेगा

उसे हर तरफ ही अब खतरा है

हर किसी से ही अब खतरा है

नहीं पता कहां वो सुरक्षित है

नहीं पता कि कोई जानने वाला

या अनजान उसे जकड़ लेगा


ये बदहाली भी तो कैसी है

उसे हर तरफ ही अब डर है

अकेले वो चल नहीं सकती

और भीड़ में तो डर ही डर है

न जाने किस दिशा से 

न जाने किस गली में

कौन उसे कब जकड़ लेगा


- आशीष तिवारी 'आरव'

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